टीएचपीसी गंगा नदी की सहायक नदी भागीरथी पर एक बहुउद्देशीय योजना है। इसे मानसून के दौरान भागीरथी नदी के अधिशेष जल को संग्रहित करने और 2400 मेगावाट के पीकिंग विद्युत उत्पादन के दौरान गैर-मानसूनी अवधि में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के गंगा के मैदानी इलाकों में सिंचाई और पेयजल की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए संग्रहित जल को छोड़ने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
टिहरी परियोजना की कल्पना 1949 में भागीरथी नदी पर एक प्रमुख भंडारण योजना के रूप में की गई थी और उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग द्वारा अन्वेषण के पश्चात, 1972 में योजना आयोग द्वारा इसके कार्यान्वयन के लिए मंजूरी प्रदान की गई थी। टिहरी एचपीसी के पहले चरण में, भारत सरकार ने मार्च 1994 में टिहरी एचपीपी के कार्यान्वयन के साथ-साथ कोटेश्वर एचईपी के सौपे गए कार्यों और टिहरी पीएसपी के आवश्यक कार्यों को मंजूरी प्रदान की।
टिहरी एचपीपी (1000 मेगावाट)
इसमें भिलंगना नदी के संगम से 1.5 किमी नीचे की ओर भागीरथी नदी पर 260.5 मीटर ऊंचा मिट्टी और पत्थर पूरित बांध सम्मिलित है। बांध एक संकरी एस-आकार की घाटी में अवस्थित है, जिसके किनारे पर खड़ी ढलानें हैं। घाटी का बायां किनारा बांध को धरातलीय सहयोग प्रदान करता है।
इसकी स्पिलवे प्रणाली में मानसून के दौरान अधिशेष जल को निकालने के लिए 3 द्वार के साथ दाहिने किनारे पर श्यूट स्पिलवे, दो राइट बैंक शाफ्ट स्पिलवे और 2 लेफ्ट बैंक शाफ्ट स्पिलवे सम्मिलित हैं। इन्हें 15540 क्यूमेक्स के संभावित अधिकतम बाढ़ (पीएमएफ) डिस्चार्ज के लिए डिज़ाइन किया गया है, जो 10,000 वर्षों में 1 पुनर्चक्रण अवधि बाढ़ के अनुरूप है। पीएमएफ पर रूटेड डिज़ाइन डिस्चार्ज 13043 क्यूमेक्स है।
उपर्युक्त के अतिरिक्त लगभग 1125 क्यूमेक्स की डिस्चार्ज क्षमता वाला एक इंटरमीडिएट लेवल आउटलेट (आईएलओ) पूर्ण जलाशय स्तर (एफआरएल) पर ईएल 700 मीटर पर दाहिने किनारे पर निर्मित किया गया है जिससे जलाशय के प्रारंभिक भराव के दौरान जल भराव की दर को नियंत्रित किया जा सके और बांध में कुछ समस्या या जल संकट के परिणामस्वरूप एमडीडीएल (ईएल 740 मीटर) के नीचे के जलाशय को खाली किया जा सके जिससे उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के गंगा के मैदानी इलाकों में उत्पन्न होने वाली जल संबंधित आपात स्थिति से उभरा जा सके।
ईएल 720 मीटर पर इंटेक के लिए प्रत्येक 8.5 मीटर व्यास की चार हेड रेस सुरंगें जो 250 मेगावाट की चार पारंपरिक (फ्रांसिस) उत्पादन यूनिटों को जोड़ने के लिए बाएं किनारे पर एक भूमिगत पावर हाउस स्थापित किया गया है।
सभी चार यूनिटें (यूनिट-IV से I की ओर) उत्तरी ग्रिड के साथ क्रमशः जुलाई 2006, अक्टूबर 2006, जनवरी 2007 और मार्च 2007 में सिंक्रोनाइज़ की गईं और 22 सितंबर 2006, 9 नवंबर 2006, 30 मार्च 2007 और 9 जुलाई 2007 से वाणिज्यिक प्रचालन में हैं।
पूरा टिहरी एचपीपी राष्ट्र के लिए मील का पत्थर और गौरव बन गया है। कमीशनिंग के बाद से परियोजना उचित प्रकार से प्रचालन में है, इसने कमांड क्षेत्र की पेयजल और सिंचाई हेतु जल की आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ उत्तरी ग्रिड की अति आवश्यक पीकिंग पावर की मांग को भी पूरा किया है एवं वर्ष 2010, 2011 और 2013 में भारी वर्षा के समय आने वाली बाढ़ के जलस्तर को भी कम किया है।