1. टिहरी और कोटेश्वर जल विद्युत संयंत्रों की संस्थापित क्षमता क्या है ?
संस्थापित क्षमता का तात्पर्य जनरेटिंग स्टेशन की सभी यूनिटों की नेमप्लेट क्षमताओं के योग या उत्पादन टर्मिनलों पर की गई गणना के अनुसार जनरेटिंग स्टेशन की क्षमता से है जो कि समय-समय पर आयोग द्वारा अनुमोदित की गई हो ।
टिहरी एचपीपी और कोटेश्वर एचईपी की संस्थापित क्षमता निम्नानुसार है:-
टिहरी एचपीपी - 1000 मेगावाट (4x250 मेगावाट)
कोटेश्वर एचईपी - 400 मेगावाट (4x100 मेगावाट)
2. टिहरी एचपीपी और कोटेश्वर एचईपी की डिजाइन ऊर्जा या वार्षिक डिजाइन उत्पादन क्षमता क्या है ?
डिजाइन ऊर्जा का आशय ऊर्जा की मात्रा से है जिसे जल विद्युत केंद्र की 95 प्रतिशत संस्थापित क्षमता पर 90 प्रतिशत निर्भरता-वर्ष में उत्पादित किया जा सकता है ।
टिहरी एचपीपी की डिजाइन ऊर्जा (वार्षिक डिजाइन ऊर्जा क्षमता) 2797 मि.यू. है और कोटेश्वर एचईपी की डिजाइन ऊर्जा (वार्षिक डिजाइन ऊर्जा क्षमता) 1155 मि.यू. है (सी.ई.ऐ. द्वारा अनुमोदित)।
3. संयंत्र भार कारक, घोषित क्षमता, इन्फर्म पॉवर, अधिसूचित ऊर्जा, अधिसूचित उत्पादन एवं यू.आई.प्रभार क्या हैं ?
1. संयंत्र भार कारक अथवा पी.एल.एफ.: ताप विद्युत जनरेटिंग स्टेशन या यूनिट के संबंध में संयंत्र भार कारक अथवा पी.एल.एफ. से तात्पर्य किसी निश्चित अवधि में अधिसूचित उत्पादन के समरूप आपूर्ति की गई कुल ऊर्जा से है जिसे उस अवधि में संस्थापित क्षमता के सापेक्ष आपूर्ति की गई ऊर्जा (sent out energy) के प्रतिशत के रूप में दर्शाया गया हो अर्थात किसी समयावधि में किसी विद्युत संयंत्र की वास्तविक आउटपुट एवं अतिरिक्त ऊर्जा खपत को कम करते हुए इसकी संस्थापित क्षमता का अनुपात पी.एल.एफ कहलाता है ।
घोषित क्षमता (डी.सी.) – जल विद्युत जनरेटिंग स्टेशन: किसी जनरेटिंग स्टेशन के संबंध में ''घोषित क्षमता'' या ''डी.सी.''से तात्पर्य, उस उत्पादन केंद्र द्वारा ईंधन या जल की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए और इसके अतिरिक्त सीईआरसी विनियमों में अर्हता के अध्यधीन, ग्रिड संहिता में यथा परिभाषित दिन के किसी अंतराल या पूरे दिन में, मेगावाट में घोषित एक्स-बस बिजली की आपूर्ति की क्षमता से है ।
जल संग्रह वाले रन-ऑफ-रिवर विद्युत केंद्रों, भंडारण-प्रकार के विद्युत केंद्रों और पंपड् स्टोरेज विद्युत केंद्रों के लिए, दिन के लिए घोषित क्षमता (एक्स-बस मेगावाट) जिसे वह केंद्रकम से कम तीन (3) के लिए घंटे आपूर्ति कर सकता है तथा जिसे नोडल भार डिस्पैच केंद्र द्वारा दिन की समाप्ति पश्चात यथा प्रमाणित किया जाता है ।
इन्फर्म पॉवर से तात्पर्य, केन्द्रीय विद्युत विनियामक आयोग के अनुसार, उत्पादन केंद्र की किसी यूनिट से वाणिज्यिक प्रचालन करने की तारीख से पूर्व ग्रिड में दी गई बिजली से है।
अधिसूचित ऊर्जा (एसई) से तात्पर्य संबंधित लोड डिस्पैच केंद्र द्वारा अधिसूचित की गई ऊर्जा की मात्रा से है जो कि उत्पादन केंद्र के द्वारा किसी दिए गए समयांतराल के लिए ग्रिड को दी जानी है।
अधिसूचित उत्पादन (एस.जी.) से तात्पर्य किसी समय या किसी अवधि या समयांतराल के लिए संबंधित लोड डिस्पैच केंद्र द्वारा मेगावाट या एम.डब्लुयु.एच. में दी गई एक्स-बस उत्पादन की अनुसूची से है।
अनशेड्यूलड इंटरचेंज (यू.आई.) - उत्पादन केंद्रों के लिए कुल वास्तविक आपूर्तित ऊर्जा और समय-सूची के अनुसार की गई कुल अनुसूचित आपूर्तित ऊर्जा के मध्य समस्त विचलनों तथा लाभार्थियों के लिए कुल वास्तविक आहरित ऊर्जा एवं समय-सूची के अनुसार आहरित कुल अनुसूचित ऊर्जा के मध्य समस्त विचलनों को उनके अनशेड्यूलड इंटरचेंज (यू.आई.) के रूप में माना जाएगा, जिसके लिए आयोग द्वारा समय-समय पर विर्निदिष्ट संबंधित विनियम के द्वारा प्रभार निश्चित किए जाएंगे। अब अनशेड्यूल्ड इंटरचेंज को डेविएशन सेटलमेंट मैकेनिज्म और यू.आई.प्रभारों को डेविएशन सेटलमेंट मैकेनिज्म प्रभारों के रूप में जाना जाता है ।
4. टिहरी एचपीपी एवं कोटेश्वर एचईपी के लिए औक्सिलरी कंसम्पशन और नोर्मेटिव औक्सिलरी कंसम्पशन क्या है?
किसी उत्पादन केंद्र के सदर्भ में किसी अवधि के लिए, औक्सिलरी एनर्जी कंसम्पशन या 'ओ.यू.एक्स.’ से तात्पर्य उत्पादन, केंद्र के औक्सिलरी उपकरणों, जैसे कि उत्पादन केंद्र के स्विचयार्ड सहित प्लांट और मशीनरी के प्रचालन हेतु प्रयुक्त उपकरणों और उत्पादन केंद्र के भीतर ट्रांसफार्मर-लॉस के द्वारा, खपत की गई ऊर्जा की मात्रा से है, जिसे उत्पादन केंद्र की सभी यूनिटों के जनरेटर टर्मिनलों पर सकल उत्पादित ऊर्जा के योग के प्रतिशत के रूप में दर्शाया जाता है, जबकि औक्सिलरी एनर्जी कन्सुम्प्शन में उत्पादन केंद्र पर आवासीय कालोनी और अन्य सुविधाओं के लिए विद्युत की आपूर्ति तथा उत्पादन केंद्र एवं समेकित कोयला खदान पर निर्माण कार्यों के लिए विद्युत खपत शामिल नहीं होगी ।
निम्नलिखित के लिए नोर्मेटिव औक्सिलरी एनर्जी कन्सुम्प्शन:
1. टिहरी एचपीपी = सकल ऊर्जा उत्पादन का 1.2 प्रतिशत (भूमिगत विद्युत गृह)
2. कोटेश्वर एचईपी = सकल ऊर्जा उत्पादन का 1 प्रतिशत (सतही विद्युत गृह)
5. संयंत्र उपलब्धता कारक एवं नोर्मेटिव संयंत्र उपलब्धता कारक क्या है ?
संयंत्र उपलब्धता कारक(PAF) - किसी उत्पादन केंद्र के लिए के माह/ वर्ष का संयंत्र उपलब्धता कारक (PAF) का तात्पर्य, माह/वर्ष के सभी दिनों के लिए उपलब्ध दैनिक घोषित क्षमता के औसत से है, जो कि मेगावाट में संस्थापित क्षमता में से नोर्मेटिव औक्सिलरी कन्सुम्प्शन को घटाकर उसके प्रतिशत के रूप में दर्शाया जाता है ।
N
PAF= 10000 x∑ DC1/ {N x IC x (100 -AUX)} %
i=1
जहां,
AUX = नोर्मेटिव औक्सिलरी एनर्जी कन्सुम्प्शन प्रतिशत में
DC1 = माह के ith दिन के लिए घोषित क्षमता (एक्स-बस मेगावाट में), जिसे उत्पादन केंद्र कम से कम तीन (3 घंटे) के लिए आपूर्ति कर सकता है और जिसे नोडल लोड डिस्पेच केंद्र दिन समाप्त होने पर प्रमाणित करता है ।
IC = पूरे उत्पादन केंद्र की संस्थापित क्षमता (मेगावाट में)
N = माह/वर्ष में दिनों की संख्या
नोर्मेटिव संयंत्र उपलब्धता कारक(NPAF):
नोर्मेटिव संयंत्र उपलब्धता कारक मूल रूप से, सभी मापदंडों जैसे इकाइयों के रख-रखाव, फोर्स्ड आउटेज और विभिन्न जलाशय-स्तरों पर बिजली की क्षमता आदि को ध्यान में रखते हुवे, डिजाइन ऊर्जा पर आधारित संयंत्र उपलब्धता कारक है
जल विद्युत उत्पादन केंद्रों के लिए नोर्मेटिव वार्षिक संयंत्र उपलबधता कारक (NPAF) केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग (सीईआरसी) के द्वारा निर्धारित एवं अनुमोदित किया जाएगा ।
6. टिहरी एचपीपी और कोटेश्वर एचईपी का नोर्मेटिव वार्षिक संयंत्र उपलब्धता कारक क्या है ?
टिहरी एचपीपी (1000मे.वा.) का नोर्मेटिव संयंत्र उपलब्धता कारक सीईआरसी विनियम, 2019 में यथानुमोदित 80% है (पूर्व में 01 अप्रैल, 2009 से 31 मार्च, 2019 तक 77% ) ।
कोटेश्वर एचईपी (400 मेगावाट) का नोर्मेटिव संयंत्र उपलब्धता कारक सीईआरसी विनियम, 2019 में यथानुमोदित 68% है (पूर्व में 01 अप्रैल, 2011 से 31 मार्च, 2019 तक 67%) ।
7. क्या टिहरी हाइड्रो पावर प्लांट अपनी पूरी क्षमता से संचालित हो रहा है ?
टिहरी एचपीपी, प्लांट की कमीशनिंग के बाद से अपनी पूरी क्षमता से चल रहा है ।
डिजाइन ऊर्जा 2797 मि.यू. की तुलना में, टिहरी प्लांट से वित्तीय वर्ष 2016-17, 2017-18 एवं 2018-19 में क्रमश: 3146 मि.यू., 3080 मि.यू. एवं 3177 मि.यू. ऊर्जा उत्पादित की गई है ।
8. क्या टीएचडीसीआईएल केवल जल विद्युत उत्पादन करने वाली कंपनी है अथवा इसने अन्य विद्युत क्षेत्रों में विविधीकरण किया है ?
टीएचडीसीआईएल केवल जल विद्युत का उत्पादन करने वाली कंपनी नहीं है। टीएचडीसीआईएल ने अन्य विद्युत क्षेत्रों में भी विविधीकरण (डायवर्सिफिकेशन) किया है । टीएचडीसीआईएल ने गुजरात में पाटन पवन विद्युत संयंत्र (50 मेगावाट) एवं देवभूमि द्वारका पवन विद्युत संयंत्र (63 मेगावाट) नामक दो पवन विद्युत संयंत्र संस्थापित किए हैं । ताप विद्युत क्षेत्र में, खुर्जा में 1320 मेगावाट की सुपर थर्मल पावर परियोजना और सौर विद्युत क्षेत्र में केरल के कासारगॉड में 50 मेगावाट की सौर विद्युत परियोजना पर कार्य चल रहा है ।
9. टिहरी बांध एवं एचपीपी (1000 मे.वा.) के कार्यान्वयन में इतना लंबा समय क्यों लगा ?
टिहरी एचपीपी के कार्यान्वयनमें देरी के मुख्य कारण हैं :
- टीएचडीसीआईएल (पूर्व में टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड) ने 1989 में उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग (यूपीआईडी) से परियोजना को लिया था । इससे पूर्व, अन्य कारणों के साथ-साथ यूपीआईडी के पास निधि की कमी के कारण परियोजना धीमी रही थी ।
- टीएचडीसीआईएल के द्वारा कार्य हाथ में लेने के बाद परियोजना के प्रमुख कार्य जैसे बांध, स्पिलवे, विद्युत गृह आदि पर कार्य शुरू करने के निर्णय के बाद, स्थानीय लोगों द्वारा परियोजना का विरोध एवं अनेक बार श्री सुंदर लाल बहुगुणा के द्वारा दिए गए धरने ।
- मई, 1996 में, पुनर्वास पर निर्णय होने तक पुराने टिहरी टाउन की जनता को दूसरे स्थान पर बसाने पर सरकार का प्रतिबंध ।
- जनवरी,1996 में टिहरी बांध की सुरक्षा से संबंधित तकनीकी पहलुओं एवं अन्य सूचनाओं की समीक्षा ।
- परियोजना प्रभावित परिवारों एवं संपत्तियों के पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना में देरी ।
- नए राज्य (उत्तराखंड) का निर्माण ।
- 1996-97 के दौरान प्रो.हनुमंत राव समिति द्वारा टिहरी बांध के पर्यावरणीय एवं पुनर्वास पहलुओं की समीक्षा ।
- भुज में आए भूकंप एवं गंगाजल की पवित्रता की गुणवत्ता पर टिहरी बांध का प्रभाव आदि के प्रकाश में अप्रैल, 2001 में डॉ. मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में गठित समिति के द्वारा टिहरी बांध की भूकंपीय सुरक्षा की समीक्षा ।
- निम्न कारणों से, अप्रैल, 2001 में डॉ. मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता में गठित समिति द्वारा टिहरी बांध की भूकंपीय सुरक्षा की समीक्षा :
भुज में आए भूकंप
गंगाजल की पवित्रता की गुणवत्ता पर टिहरी बांध का प्रभाव आदि। - वाटर इन्टेक क्षेत्र में अप्रत्याशित भूगर्भीय घटनाओं का सामना ।
- टी-2 सुरंग बंद होने के विरोध में दायर पीआईएल पर अगस्त, 2005 में माननीय हाईकोर्ट के द्वारा दिए गए स्थगनादेश के कारण अपेक्षित एम.डी.डी.एल. प्राप्त करने में देरी ।
10. टीएचडीसी इंडिया लि. से उत्तराखंड राज्य को क्या लाभ होंगे ?
टीएचडीसीआईएल ने अधिकतम निवेश उत्तराखंड में किया है। टीएचडीसीआईएल ने उत्तराखंड राज्य में अभी तक लगभग 120 बिलियन रुपयों का संचयी निवेश किया है। इसके अलावा, लगभग 60 बिलियन रुपयों का निवेश निकट भविष्य में आने वाली नई परियोजनाओं पर किया जाना प्रस्तावित है।
टीएचडीसीआईएल राज्य ट्रेजरी में करों के माध्यम से भी योगदान दे रहा है। इसके अतिरिक्त, टिहरी परियोजना प्रभावित परिवारों के पुनर्वास और पुनर्वास स्थलों में निर्मित की गई अवसंरचनात्मक सुविधाओं पर लगभग 16 बिलियन रुपयों के खर्च से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला है।
गृह राज्य उत्तराखंड, टीएचडीसीआईएल के उत्पादन केंद्रो से 12% मुफ्त विद्युत की आपूर्ति के माध्यम से सीधे तौर पर लाभांवित हो रहा है।
नई टिहरी शहर को समस्त आधुनिक शिक्षा सुविधाओं (एक आई.टी.आई. एवं एक विश्वविद्यालय सहित) चिकित्सालय, वित्तीय संस्थाएं, जिला प्रशासनिक कार्यालयों, बाजार, बस स्टैंड और पूजा स्थलों इत्यादि के साथ एक आधुनिक हिल स्टेशन के रूप में विकसित किया गया है। इससे वाणिज्यिक उद्यमों जैसे बोटिंग, ट्रांसपोर्ट, वाहन मरम्मत दुकानें, व्यवसाय, होटल व्यवसाय इत्यादि में रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है।
टीएचडीसीआईएल द्वारा उत्तराखंड के युवकों को सीधे रोजगार दिया गया है। टीएचडीसीआईएल ने लगभग 61% रोजगार टिहरी जिले से और गढ़वाल क्षेत्र के अन्य जिलों के 125 व्यक्तियों को रोजगार दिया है। इसके अलावा, उत्तराखंड के युवकों को स्व-रोजगार करने हेतु आवश्यक सहायता एवं मार्गदर्शन प्रदान किया गया है।
टीएचडीसीआईएल राज्य में शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने के प्रति भी संवेदनशील है। टीएचडीसीआईएल ने टिहरी परियोजना क्षेत्र में टीएचडीसी इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रो पावर इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी नामक इंजीनियरिंग कॉलेज सह हाइड्रो पावर इंस्टिट्यूट खोला है। टीएचडीसीआईएल ने दो आई.टी.आई. (आई.टी.आई., चंबा एवं आई.टी.आई., गोपेश्वर) को भी गोद लिया है । इसके अलावा टीएचडीसीआईएल उत्तराखंड में परियोजना के आस-पास के क्षेत्रों में स्कूलों का संचालन भी कर रही है ।
11. टिहरी बांध के ऊपर ट्रैफिक की अनुमति क्यों नहीं दी जा रही है?
टिहरी बांध मिट्टी एवं पत्थर पूरित सामग्री से बना है। बांध शीर्ष के 5 मीटर नीचे से एक सुरंग गुजरती है। बांध के व्यवहार के अध्ययन के लिए इसकी संरचना में विभिन्न प्रकार के संवेदनशील उपकरणों को लगाया गया है, जिन पर भारी वाहनों से युक्त यातायात के कारण विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। वाहनों के आने-जाने से उत्पन्न कंपनों / सूक्ष्म ट्रिमर के चलायमान होने से, ढांचागत सुरक्षा प्रभावित हो सकती है । आम वाहनों के आने-जाने से इसके विभिन्न हिस्सों एवं क्षेत्रों में धंसाव होने का खतरा है। सुरक्षा कारणों से भी वाहनों की भीड़ को अनुमति नहीं दी जा रही है। टिहरी के पुलिस अधीक्षक ने भी जुलाई,2012 के दौरान अवगत कराया है कि आतंकवादियों की गतिविधियों को ध्यान में रखते हुवे, बांध सुरक्षा में मजबूती लाने के क्रम में वाहनों की भीड़ को भी बांध-शीर्ष से जाने की अनुमति न दी जाए।
विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार ने, दिनांक 21 जून,2006 के ज्ञापन द्वारा, बांध-शीर्ष पर आवाजाही की अनुमति के लिए 02 विशेषज्ञ समितियां (तकनीकी एवं सुरक्षा पहलुओं से संबंधित) गठित की थी। विद्युत मंत्रालय, भारत सरकार ने विशेषज्ञ समिति द्वारा दिए गए सुझावों का अनुपालन करने और बांध के ऊपर वाणिज्यिक और निजी वाहनों की आवाजाही की अनुमति नहीं देने का निर्देश दिया है। यद्यपि, यह उल्लिखित किया गया था कि आस-पास के गांवों के ग्रामीणों को बांध के ऊपर पैदल चलने के लिए जिला प्रशासन/सुरक्षा एजेंसी (सी.आई.एस.एफ.) द्वारा जारी किए गए पास के बाद अनुमति दी जा सकती है।
12. जब टिहरी बांध जलाशय से जल छोड़ा जाता है तब ऋषिकेश एवं हरिद्वार में बाढ़ का क्या खतरा है ? या वर्षा ऋतु के दौरान टिहरी बांध, बाढ़ नियंत्रण में किस तरह मदद करता है ?
बाढ़ नियंत्रण एवं जल प्रबंधन टिहरी बांध के प्रमुख लाभों में से एक है। भारी वर्षा के दौरान टिहरी बांध अपने बड़े जलाशय में बाढ़ के जल को रोककर बाढ़ की भयावहता से गंगा नदी के किनारे बसे शहरों जैसे ऋषिकेश, हरिद्वार एवं नीचे के अन्य शहरों के लोगों की वास्तविक रुप से मदद करता है। टिहरी परियोजना से नियंत्रित बहाव के साथ परियोजना प्राधिकारियों के द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि बांध के निचले क्षेत्र में बसे हुए लोगों को गंगा नदी के भारी जल प्रवाह से बचाया जाए, जैसा कि गत वर्षों 2010 एवं 2013 में हुआ ।
टिहरी बांध 260.5 मी. ऊंचा मिट्टी एवं पत्थर पूरित बांध है। बांध की सकल भंडारण क्षमता 3540 मिलियन क्यूबिक मीटर (एम.सी.एम.) है और न्यूनतम ड्रॉ डाउन लेवल (एम.डी.डी.एल.) (ई.एल. 740 मी.) तथा पूर्ण जलाशय लेवल (एफ.आर.एल.) (ई.एल. 830 मी.) के बीच लाइव भंडारण क्षमता 2615 एम.सी.एम. है। बाढ़ के आने वाले जल को जलाशय में मानसून के दौरान एफ.आर.एल. तक भरा जा सकता है। लेकिन, एक बार जलाशय स्तर एफ.आर.एल. तक पहुंचने पर बाढ़ की निकासी के लिए स्पिलवे अपना काम शुरू कर देते हैं। टिहरी स्पिलवे को 15,540 क्यूमेक्स की पीक अधिकतम बाढ़ (पी.एम.एफ.) के लिए परिकल्पित किया गया है जिसके घटित होने की संभावना 1:10,000 वर्षों में है। टिहरी स्पिलवे में दाएं किनारे पर शूट स्पिलवे, दाएं किनारे पर 02 शाफ्ट स्पिलवे (आर.वी.एस.एस.) और बाएं किनारे पर 02 शाफ्ट स्पिलवे (एल.बी.एस.एस.) शामिल हैं। स्पिलवे के प्रचालन का क्रम निम्नवत है-
1. जैसे ही जल स्तर 830.0 मी. से ऊपर उठता है, शूट स्पिलवे, सभी तीनों गेट की स्टेजड लिफ्टिंग के साथ ही प्रचालन करने लगेगा ।
2. शूट स्पिलवे के गेटों के पूरा खुलने के साथ, यदि जल स्तर लगातार 830.0 मी. से ऊपर उठता है तो, एल.बी.एस.एस. दोनों गेटों की स्टेज लिफ्टिंग द्वारा प्रचालन में आ जायेंगे। गेटों का उठना ठीक उसी तरह है जिस प्रकार शूट स्पिलवे गेटों का है।
3. शूट स्पिलवे एवं एल.बी.एस.एस. के गेटों के पूरी तरह से खुलने के साथ, यदि जल स्तर लगातार 830.0 मी. से ऊपर चढ़ना जारी रहता है तो बिना गेट का आर.बी.एस.एस., 830.20 मी. पर इन्टेक के साथ, स्वतः प्रचालन में आ जाएगा और अतिरिक्त बहाव की निकासी होने लगेगी ।
4. 15,540 क्यूमेक्स के पी.एम.एफ. की दशा में, 13043 क्यूमेक्स उपरोक्तानुसार स्पिलवे द्वारा छोड़ दिया जाएगा और शेष जल जलाशय में एफ.आर.एल. (830 मी.) एवं एम.डब्लुयु.एल. (835 मी.) के बीच इकट्ठा हो जाएगा।
उपरोक्त प्रदर्शित स्पिलवे प्रचालन क्रम, जलाशय संचालन के वैचारिक दृष्टिकोण पर आधारित है। लेकिन व्यवहार में यह जलाशय नियम वक्र द्वारा विनियंत्रित है और यदि यदि उच्च प्रवाह के कारण स्थिति उत्पन्न होती है तो स्पिलवे को एफ.आर.एल. पर पहुंचने से पूर्व भी प्रचालित किया जा सकता है।
13.टिहरी बांध द्वारा टिहरी जलाशय उस स्थान पर बनाया गया है जहां मुक्त रूप से बह रही भागीरथी एवं भिलंगना नदीयां स्थिर हो गई हैं । क्या इससे पानी की गुणवत्ता प्रभावित नहीं होती है ?
यद्यपि, जलाशय में पानी ठहरा हुआ लगता है लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। भागीरथी नदी के जल की गुणवत्ता पर टिहरी बांध के प्रभाव का आंकलन करने के क्रम में रूड़की विश्वविद्यालय द्वारा जल गुणवत्ता मॉडलिंग अध्ययन भी किया गया था । अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला था कि जल भराव के कारण पानी की गुणवत्ता पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा। जलाशय में घुली हुई आक्सीजन (डी.ओ.) एवं बायो-कैमिकल आक्सीजन डिमांड (बी.ओ.डी.), पेयजल स्रोतों के लिए वांछित सीमा के भीतर रहने को अपेक्षित हैं ।
केंद्रीय जल एवं विद्युत अनुसंधान केद्र (सी.डब्लुयु.पी.आर.एस.) पुणे ने भी जल चक्रण पर गणितीय मॉडल का अध्ययन किया है और यह निष्कर्ष निकाला है कि जलाशय में पूरे वर्ष के दौरान जल गतिशील परिसंचरण के अंतर्गत रहता है और स्थिर नहीं रहता है। अतः, यद्यपि जलाशय में पानी बाहर से स्थिर दिखाई देता है, वास्तविकता में यह जलाशय के अंदर गतिशील परिसंचरण के अंतर्गत रहता है ।
गंगा (भागीरथी) जल के स्वशुद्धिकरण गुणधर्म के मुद्दे के संबंध में राष्ट्रीय पर्यावरणीय इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) नागपुर द्वारा एक अध्ययन किया गया था, जिसका शीर्षक ''भागीरथी / गंगा का स्वशुद्धिकरण गुणधर्म : टिहरी बांध का प्रभाव (2004)'' था । अध्ययन से पता चला है कि भागीरथी / गंगा नदी की विशिष्टता इसकी तलछट सामग्री में है जो कि अन्य नदियों एवं झीलों के जल की तलछट सामग्री की तुलना में अधिक रेडियोएक्टिव है और तांबा और क्रोमियम छोड़ सकती है, जिसमें जीवाणुनाशक गुण होते हैं, जो (स्थिर दशा में) प्रचुर मात्रा में उत्पन्न होकर संरक्षण कर सकते हैं, यह सतह पर फैले हुए जल कॉलम से कोलीफार्म को कम करके समाप्त कर देते हैं। इसलिए, टिहरी बांध भागीरथी / गंगा नदी की गुणवत्ता या स्वशुद्धिकरण विशेषता को प्रभावित नहीं करता क्योंकि यह स्थिर पात्र के समान है जो जल की गुणवत्ता कायम करने के लिए उत्तरदायी दशा हेतु अनुकूल है ।
इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि निर्मित जलाशय के बाद जल की गुणवत्ता पर लोगों की आस्था एवं विश्वास बनाए रखने के लिए परियोजना प्राधिकारियों के द्वारा काफी एतिहायती कदम उठाए गए हैं। सभी अध्ययनों से यही निष्कर्ष निकला है कि जल की गुणवत्ता उसी तरह बनी रहेगी जैसी यह टिहरी बांध निर्माण से जलाशय बनने से पूर्व थी।
14.परियोजना प्रभावित परिवारों के बच्चों को टीएचडीसी इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रो पावर इंजीनियरिंग एवं टेक्नोलॉजी में प्रवेश हेतु क्या सुविधाएं दी जा रही हैं ?
टिहरी परियोजना के परियोजना प्रभावित परिवारों के बच्चों के लिए टीएचडीसी इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रो पावर इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में 5% सीटें आरक्षित हैं।
15.टिहरी बांध ने उत्तर प्रदेश के कमांड क्षेत्र में सिंचाई में मदद की है और उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली के भी कई शहरों को पेयजल उपलब्ध करा रहा है । अन्य राज्यों को परियोजना से क्या लाभ हैं जहां गंगा यू.पी. के बाद बह रही है ?
टिहरी हाइड्रो पावर काम्प्लेक्स (2400 मे.वा.) एक बहुउद्देशीय परियोजना है जिसकी संकल्पना एवं डिजाइन इस प्रकार तैयार किया गया था कि मानसून के दौरान भागीरथी नदी के अतिरिक्त जल को रोककर और मानसून के बाद भंडारित जल को छोड़कर, ग्रिड को पीकिंग सपोर्ट देने के अतिरिक्त, उ.प्र. की सिंचाई आवश्यकता और उ.प्र. एवं दिल्ली की पेयजल आवश्यकता को पूरा किया जा सके।
टिहरी बांध एवं एचपीपी द्वारा उत्पादित बिजली उत्तर क्षेत्र के नौ (09) लाभार्थी राज्यों अर्थात उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमांचल प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर, चंडीगढ़ एवं राजस्थान को प्रदान की जाती है।
टिहरी बांध के जलाशय में मानसून के मौसम के जल को इकट्ठा किया जाता है और पेयजल एवं सिंचाई की आवश्यकतानुसार पूरे वर्ष छोड़ा होता है, जिससे वर्ष भर गंगा नदी में जल की उपलब्धता बनी रहती है, जिसका उपयोग पेयजल, सिंचाई एवं वाणिज्यिक जैसे की विद्युत उत्पादन इत्यादि के लिए, अन्य राज्यों द्वारा भी किया जा सके, जहां गंगा बहती है । इसके अलावा हरिद्वार / ऋषिकेश / इलाहाबाद में महत्वपूर्ण स्नानों के दौरान चौबीसों घंटे जल की उपलब्धता भी बनाए रखी जाती है । टिहरी बांध से अतिरिक्त जल की उपलब्धता के कारण होने वाले प्रमुख लाभ निम्नानुसार हैं -
कमांड क्षेत्र में सिंचाई - अतिरिक्त 2.70 लाख हेक्ट.
स्थिरीकरण 6.04 लाख हेक्ट.
दिल्ली के लिए पेयजल (162 एम.जी.डी.) -300 क्यूसेक (40 लाख जनता के लिए)
उत्तर प्रदेश के लिए पेयजल (108 एम.जी.डी.) - 200 क्यूसेक (30 लाख जनता के लिए)
डाउनस्ट्रीम परियोजनाओं में वार्षिक उत्पादन में वृद्धि - 200 मि.यू.
16.क्या यह सच है कि गंगा नदी में स्नान (माघ मेला, कुंभ मेला इत्यादि) के लिए जल की उपलब्धता टिहरी बांध के बनने के बाद निर्माण से पहले की तुलना में कहीं अधिक है ?
हां, यह वास्तविकता है। प्रत्येक वर्ष आयोजित होने वाले मेलों के दौरान, हरिद्वार एवं अन्य स्थानों, यहां तक कि इलाहाबाद और वाराणसी में स्नानों / संस्कारों को सुचारू रूप से संपन्न करने में सुविधा के लिए, टिहरी बांध से जल निकासी को संवर्धित किया जाता है । उदाहरण के लिए, 2010 में हरिद्वार में तथा 2013 में इलाहाबाद में संपन्न महा कुंभ मेला के दौरान सुचारू रूप से स्नान के लिए जल की उपलब्धता को टीएचडीसीआईएल के द्वारा सुनिश्चित किया गया था । टिहरी बांध जलाशय से कुंभ मेला स्नान के लिए गंगा नदी में जल की पर्याप्त मात्रा सुनिश्चित करने के लिए 250-300 क्यूमेक्स पानी छोड़ा गया, जबकि टिहरी जलाशय में जल का अंतर्प्रवाह लगभग 50-70 क्यूमेक्स था । राज्य सरकार, मेला प्राधिकारी एवं संत समाज ने इसकी काफी सराहना की थी ।
17.टिहरी बांध राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय (उत्तराखंड) स्तर पर अर्थव्यवस्था में किस प्रकार योगदान दे रहा है ?
टिहरी बांध अपने तरीके से राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय (उत्तराखंड) स्तर पर अर्थव्यवस्था में लगातार योगदान दे रहा है।
देश में बिजली के उत्पादन में 1% की वृद्धि से जीडीपी में 1% की वृद्धि का योगदान होता है ।
टिहरी एचपीपी एवं कोटेश्वर एचईपी द्वारा उत्पादित बिजली की आपूर्ति उत्तरी क्षेत्र के नौ लाभार्थी राज्यों; उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, हिमांचल प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, केंद्र शासित प्रदेश जम्मू एवं कश्मीर, चंडीगढ़ एवं राजस्थान को की जाती है।
टीएचडीसीआईएल, टिहरी एचपीपी के वाणिज्यिक प्रचालन के प्रथम वर्ष अर्थात 2006-07 से ही लाभ अर्जित कर रही है। टीएचडीसीआईएल द्वारा अर्जित लाभ के एक भाग का भुगतान लाभांश के रूप में शेयरहोल्डरों, भारत सरकार एवं उ.प्र. सरकार को वापिस किया जाता है।
टीएचडीसीआईएल द्वारा अर्जित लाभ का एक हिस्सा (पीएटी का 2%) सी.एस.आर. और सततता गतिविधियों हेतु नॉन-लैप्सेबल सीएसआर एवं सततता कोष में निर्धारित किया गया है।
टिहरी एचपीपी (1000 मे.वा.) एवं कोटेश्वर एचईपी (400 मे.वा.) से उत्पादित विद्युत के 12% भाग की आपूर्ति गृह राज्य उत्तराखंड को निःशुल्क की जाती है ।
कंपनी वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद पर करों का भुगतान करती है, अतः प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार उत्पन्न करते हुए स्थानीय अर्थव्यवस्था में सहयोग करती है।
टिहरी परियोजना, आसपास के क्षेत्रों के विकास और जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए, रोजगार के अवसर उपलब्ध कराते हुए और मतस्य पालन, पर्यटन, जल क्रीडाओं इत्यादि, जिसके लिए उत्तराखंड राज्य सरकार उपक्रम कर रही है, द्वारा राजस्व के अतिरिक्त स्रोत उत्पन्न कर महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाती है ।
18. टिहरी हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के निर्माण के दौरान पर्यावरणीय नुकसान को कम करने के लिए किस प्रकार के उपाय किए गए हैं ?
टिहरी हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के निर्माण के दौरान पर्यावरण पर बुरे प्रभाव को कम करने के लिए किए गए उपायों को संक्षेप में नीचे दिया गया है-
- जलागम क्षेत्र उपचार (सीएटी): जलागम क्षेत्र उपचार (सीएटी) पूरा कर दिया गया है। उत्तराखंड सरकार (पूर्व में उ.प्र.सरकार) के वन विभाग ने टीएचडीसीआईएल द्वारा उपलब्ध कराई गई निधि से कार्य योजना का कार्यान्वयन कर दिया गया है। कुल क्षेत्र 52,204 हेक्ट. जिसमें 44,157 हेक्ट. वन तथा 8,047 हेक्ट. कृषि भूमि शामिल है, का उपचार राज्य वन विभाग द्वारा किया गया है ।
- वनस्पतियों और जीवों का संरक्षण: जलाशय के कारण प्रभावित वनस्पतियों के लिए बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया (बीएसआई) और जीवों के लिए जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जेड.एस.आई) के माध्यम से अध्ययन कराया गया था । इन रिपोर्टों को 1993 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय में प्रस्तुत किया गया था। वनस्पतियों के संरक्षण के लिए, जलाशय के समीप 14.28 हेक्ट. के क्षेत्र में, डूब क्षेत्र के विशिष्ट प्रजाति के पौधों का एक वानस्पतिक उद्यान स्थापित किया गया है। क्षेत्र की महत्वपूर्ण वनस्पतियों को बचाने के लिए वानस्पतिक उद्यान स्थापित किया गया है। इस प्रयोजन के लिए डूब क्षेत्र के पौधों को लेकर बनाई गई हाई-टेक नर्सरी कार्य कर रही है । वानस्पतिक उद्यान का रखरखाव टीएचडीसीआईएल द्वारा वित्त पोषण के माध्यम से राज्य वन विभाग द्वारा किया जा रहा है। जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जेड.एस.आई) के सुझाव पर महाशीर मछली का कृत्रिम प्रजनन करने के लिए महाशीर मछली हेचरी एवं मछली फार्म स्थल कोटेश्वर बांध के निकट विकसित किया गया है।
- जल गुणवत्ता नियंत्रण: आईआईटी, रूड़की एवं नीरी द्वारा किए गए जल गुणवत्ता अध्ययनों के अलावा सीपीआरआई, बीएचईएल हरिद्वार द्वारा नियमित रूप से, नमूना स्थलों; धरासू (भागीरथी नदी), घनसाली (भिलंगना नदी), जीरो प्वाइंट (टिहरी बांध के डाउनस्ट्रीम में), देवप्रयाग के ऊपरी और निचले क्षेत्र में, जल की गुणवत्ता की जांच की जा रही है। जलाशय के भराव के बाद जल की गुणवत्ता पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पाया गया है।
- आपदा प्रबंधन योजना (डीएमपी): टीएचडीसी द्वारा आपदा प्रबंधन योजना (डी.एम.पी.) तैयार की गई है, जिसे अप्रैल, 1992 में इस प्रयोजन के लिए, नोडल एजेंसी, कृषि मंत्रालय (एम.ओ.ए.) को प्रस्तत किया गया था। विचार-विमर्श के बाद कृषि मंत्रालय ने 24.02.99 को डीएमपी को अनुमोदित कर दिया था ।
यह आपदा प्रबंधन योजना (डी.एम.पी.) प्रत्येक वर्ष मानसून से पूर्व नियमित रूप से अद्यतन की जाती है और डिजास्टर मिटिगेशन एंड मेनेजमेंट सेंटर (डी.एम.एम.सी.), उत्तराखंड सरकार देहरादून, जो कि उत्तराखंड राज्य में आपदा का कार्य करने के लिए नोडल एजेंसी है, के साथ समन्वय कर इसकी समीक्षा की जाती है।
- प्रतिपूरक वनीकरण: टिहरी हाइड्रो पावर काम्प्लेक्स के लिए जलागम क्षेत्र उपचार (सी.ए.टी.) योजना हेतु आवश्यक प्रतिपूरक वनीकरण 4586 हेक्ट. गैर वन भूमि क्षेत्र (ललितपुर - 3960 हेक्ट. एवं झांसी- 626 हेक्ट.) को पूरा कर दिया गया है। इसमें कोटेश्वर एचईपी (400 मे.वा.) के कारण प्रभावित 338.932 हेक्ट. वन भूमि के बदले में प्रतिपूरक वनीकरण शामिल है। गैर वन भूमि पर किए गए पौधरोपण को राज्य वन विभाग द्वारा सुरक्षित वन में परिवर्तित किया जा रहा है। टिहरी बांध परियोजना प्रभावित परिवारों के पुनर्वास के लिए वांछित वन भूमि (वीरभद्र, देहरादून एवं हरिद्वार में पथरी) के 1358.20 हेक्ट. क्षेत्र की तुलना में प्रतिपूरक वनीकरण, परियोजना की लागत पर जिला हरिद्वार में खानपुर वन रैंज में निम्न स्तर की वन भूमि के 2716.40 हेक्ट.क्षेत्र पर किया गया है।
- कमांड क्षेत्र विकास योजना (सीएडीपी): कमांड क्षेत्र विकास योजना (सी.ए.डी.पी.) उ.प्र. सरकार द्वारा प्रस्तुत की गई थी और जुलाई 1998 में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को विद्युत मंत्रालय द्वारा अग्रसारित की गई थी । सीएडीपी योजना में उन क्षेत्रों को भी जोड़ दिया गया है जो अब उत्तराखंड का हिस्सा हैं ।
19.टिहरी बांध परियोजना के परियोजना प्रभावित परिवारों की दशा/ स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए क्या कोई अध्ययन किया गया है ? यदि हां, तो उसका विवरण.
एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ कॉलेज ऑफ इंडिया द्वारा मार्च, 2013 में आर एंड आर की प्रभावशीलता की जांच करने के लिए पुनर्वासित परिवारों का सामाजिक-आर्थिक अध्ययन किया गया था । अध्ययन में यह निष्कर्ष सामने आया कि पुनर्वास के बाद विस्थापितों को उनके पूर्ववर्ती निवास क्षेत्रों में उपलब्ध सुविधाओं की अपेक्षा अब बेहतर सुविधाएं एवं सुख-सुविधाएं प्रदान की गई हैं। विस्थापितों की परिसंपत्तियों की कीमत एवं कृषि से उत्पन्न आय काफी बढ़ गई है । उनकी बाजार तक पहुंच एवं वेतन अर्जित करने के अवसरों में भी काफी हद तक सुधार हुआ है। पुनर्वास के बाद घरों की वार्षिक आय में प्रचुर वृद्धि हुई है। नये पुनर्वास स्थलों में पक्के भवन, बिजली, पेयजल की सुविधाएं, बेहतर चिकित्सा सुविधाएं, एलपीजी कनेक्शन इत्यादि उपलब्ध करवाए गए हैं।
आर एंड आर प्रक्रियाएं काफी हद तक पूरी होने के बाद, प्रथम अध्ययन के परिणामों की तुलना करने के लिए और यदि कोई परिवर्तन हुए हैं तो उनको समझने के लिए, एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ कॉलेज ऑफ इंडिया द्वारा अध्ययन को अद्यतन किया गया था । इसकी मई, 2009 की रिपोर्ट में एएससीआई ने निष्कर्ष निकाला कि “टिहरी एचईपी के लिए पुनर्वास एवं पुनर्स्थापना, जो कि बड़े पैमाने पर हुआ था, में परियोजना प्रभावित परिवारों के लोगों के जीवन स्तर में बड़े पैमाने पर सुधार हुआ है।
20. टिहरी परियोजना के पुनर्वास की स्थिति क्या है ?
टिहरी परियोजना का पुनर्वास का कार्यान्वयन टीएचडीसी द्वारा उपलब्ध कराई गई निधि के साथ उत्तराखंड राज्य सरकार द्वारा किया गया था। पुनर्वास पूरा कर दिया गया है। कुल 5291 शहरी परिवार तथा 5429 ग्रामीण परिवार पुनर्वासित किए गए थे,जबकि 3810 आंशिक प्रभावित परिवारों को दूसरे स्थान पर बसाने की आवश्यकता नहीं थी।
स्थनीय निवासियों से प्राप्त प्रतिवेदन को दृष्टिगत रखते हुए निदेशक (पुनर्वास), उत्तराखंड सरकार, ने निर्णय लिया कि भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा किए गए सर्वेक्षण का पुन: सर्वेक्षण कराया जाए, ताकि आरएल-835 मी. पर वास्तविक लाइन को खींचा जा सके । निदेशक (पुनर्वास) की सलाह पर, सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा सर्वेक्षण किया गया और आरएल-835 मी. पर नई सीमांकन लाइन नियत की गई । आरएल-835 मी. पर पूर्ववर्ती सर्वे लाइन के चिन्हीकरण में गलती के कारण, 45 गांवों (पूर्व में 109 गांव शामिल थे) में कुछ और अधिक भूमि अधिग्रहीत की जानी थी तथा अतिरिक्त 108 पात्र परिवारों को आरएल-835 मी. की नई सर्वे लाइन के चिन्हींकरण के अनुसार पुनर्वासित किया जाना था।
आरएल-835 मी. तक सभी चिन्हित परिवारों का पुनर्वास आर एंड आर नीति के अनुसार पूरा कर दिया गया है। पूर्ण जलाशय लाइन के ताजा सर्वेक्षण के कारण अतिरिक्त 108 परिवारों का पुनर्वास के लिए, राज्य सरकार ने पुष्टि की है कि आरएल-835 मी. तक की भूमि पहले ही अधिग्रहित कर ली गई थी और सभी प्रभावित परिवारों को, जो पात्र पाए गए थे, का पुनर्वास कर लिया गया है।
पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन की लागत 1380.96 करोड़ रूपए थी । सचिव (विद्युत), भारत सरकार की अध्यक्षता में 30.06.2011 को भारत सरकार, उत्तराखंड सरकार एवं टीएचडीसी के मध्य संपन्न बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार, टीएचडीसी इंडिया लि. ने टिहरी परियोजना के आर एंड आर को पूरा करने के लिए पूर्ण और अंतिम भुगतान के प्रति 102.99 करोड़ रूपए अवमुक्त किए। आर.एंड.आर पर किया गया कुल व्यय 1484 करोड़ रूपए है।
21.क्या टिहरी परियोजना से प्रभावित लोगों की अभी भी कुछ शिकायतें है और शिकायतों के निवारण के लिए क्या तंत्र है ?
परियोजना प्रभावित परिवारों की कुछ शिकायतें हैं। परियोजना प्रभावित परिवारों की शिकायतों को सुनने एवं जांच करने के क्रम में एक शिकायत निवारण प्रकोष्ठ स्थापित किया गया है । माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों के अनुपालन में, रजिस्ट्रार जनरल, उत्तराखंड उच्च न्यायलय ने परियोजना प्रभावित परिवारों की मुआवजे एवं आबंटन आदि से संबंधित शिकयतों को देखने के लिए एक सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (अतिरिक्त) नियुक्त किया है ।
22.क्या सीएसआर और पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन एक ही हैं ?
नहीं, सीएसआर और पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन एक नहीं हैं।
आरएंडआर उन परियोजना प्रभावित परिवारों पर लागू है जिन्हें उनकी भूमि /संपत्ति / आजीविका पर परियोजना के प्रभाव के करण मुआवजा दिया जाना था । उनकी परियोजना तैयार करने के चरण में ही सूची तैयार की गई थी और आर एंड आर के लिए परियोजना लागत के भाग के रूप में शामिल किए गए थे।
सीएसआर से तात्पर्य कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व से है, जिसके अंतर्गत ट्रिपल बॉटम लाइन कॉन्सेप्ट अर्थात प्यूपल, प्लेनेट एंड प्रोफिट, पर ध्यान केंद्रित करते हुए व्यापार किया जाता है। सीएसआर के अंतर्गत किया जाने वाला व्यय, टीएचडीसीआई के व्यापार लाभ में से किया जाता है। वर्तमान सरकारी दिशानिर्देशों के अनुसार सीएसआर एवं सस्टेनिबिलिटी के लिए निम्नलिखित रेंज तय की गई हैं-
सीपीएसई का पीएटी (टैक्स के बाद लाभांश)
(पिछले वर्षों में) | सीएसआर तथा सस्टेनिबिलिटी कार्य के लिए
बजटीय आबंटन की रेंज
(पिछले वर्षों में पीएटी के प्रतिशत के रूप में ) |
(i) 100 करोड़ से कम | 3% - 5% |
(ii) 100 करोड़ से 500 करोड़ | 2% - 3% |
(iii) 500 करोड़ एवं उससे ऊपर | 1% - 2% |
टीएचडीसीआईएल शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास, आय सृजन योजनाओं, बुनियादी ढांचा सहायता और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्रों में, सीएसआर गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल रही है।
23. क्या टीएचडीसीआईएल का कोई संयुक्त उपक्रम(जेवी) है?
स्वच्छ और हरित ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करते हुए, उ.प्र. राज्य में 2000 मेगावाट के अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा पार्क के विकास के लिए टीएचडीसीआईएल और 'यूपीनेडा' (उत्तर प्रदेश नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी) के मध्य 'टुस्को लिमिटेड' नामक एक संयुक्त उपक्रम कंपनी को सितंबर 2020 में निगमित किया गया है।
इसके बाद, राजस्थान राज्य में 10,000 मेगावाट के अल्ट्रा मेगा नवीकरणीय ऊर्जा पार्क के विकास के लिए टीएचडीसीआईएल और 'आरआरईसीएल' (राजस्थान नवीकरणीय ऊर्जा कॉर्पोरेशन लिमिटेड) के मध्य 'ट्रेडको राजस्थान लिमिटेड' नामक एक अन्य संयुक्त उपक्रम कंपनी को भी मार्च 2023 में निगमित किया गया है।
उत्तराखंड में जल विद्युत परियोजनाओं के विकास के लिए टीएचडीसीआईएल और 'यूजेवीएनएल' (उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड) के मध्य दिसंबर 2023 में टीएचडीसीआईएल-यूजेवीएनएल ऊर्जा कंपनी लिमिटेड (टीयूईसीओ लिमिटेड) नामक एक संयुक्त उपक्रम कंपनी स्थापित की गई है।
24. पंप्ड स्टोरेज प्लांट (पीएसपी) क्या है?
पंप्ड स्टोरेज प्लांट (पीएसपी) एक प्रकार का जल विद्युत ऊर्जा संयंत्र है जिसका उपयोग विद्युत के स्टोरेज के लिए किया जाता है। यह विद्युत की निम्नतम मांग की अवधि यानी ऑफ-पीक घंटों (आमतौर पर रात्रि में या जब अतिरिक्त विद्युत उपलब्ध हो) के दौरान अन्य विद्युत स्रोतों से अधिशेष विद्युत का उपयोग करके निचले जलाशय से उच्च जलाशय तक जल को पंप करके प्रचालित किया जाता है। फिर, उच्च मांग की अवधि यानी पीक आवर्स के दौरान, स्टोरेज जल का उपयोग विद्युत उत्पादन करने के लिए किया जाता है और जल को टरबाइनों से गुजारते हुए वापस निचले जलाशय में छोड़ दिया जाता है। पीएसपी ग्रिड में विद्युत की आपूर्ति और मांग को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, प्रचुर मात्रा में विद्युत को स्टोरे करने और आवश्यकता पड़ने पर इसे उत्पादित करने का साधन प्रदान करते हैं। इससे ग्रिड को स्थिर करने और विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।
25.टिहरी जल विद्युत परियोजनाएँ बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई एवं पेयजल आपूर्ति आदि की दृष्टि से किस प्रकार लाभदायक हैं?
बाढ़ की रोकथाम: बाढ़ के जल को स्टोर करके और मैदानी भागों की आबादी को इसके विनाशकारी प्रभाव से बचाने में टिहरी बांध एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। टिहरी बांध, यहां तक कि सबसे खराब स्थिति में भी (10,000 वर्ष की अवधि में 01 बार की बाढ़ की स्थिति) बाढ़ की चरम स्थिति में जल को स्टोर करने में सक्षम है और उसके बाद जब बाढ़ कम हो जाती है उसे नदी के निचले हिस्से में एक विनियमित रूप से प्रवाहित करने में सक्षम है। टिहरी बांध ने गंगा नदी में उच्च स्तर की बाढ़ को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है इसी क्रम में वर्ष 2010 और 2011 में भागीरथी और भिलंगना नदी के उच्च बाढ़ प्रवाह को रोककर विनाश को कम किया है। जून 2013 में उत्तराखंड में बाढ़ के दौरान जब केदारनाथ त्रासदी हुई थी भागीरथी नदी का लगभग पूरा डिस्चार्ज टिहरी बांध में संग्रहित किया गया, जिससे ऋषिकेश/हरिद्वार तक के क्षेत्र को आपदा से सुरक्षित रखा जा सका।
सिंचाई और पेयजल: टिहरी बांध में संग्रहीत पानी से लगभग 2.70 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई होती है और उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के गंगा के मैदानी इलाकों में लगभग 6.04 लाख हेक्टेयर भूमि से स्थिरता के साथ कृषि उत्पादन होता है, इसके अलावा दिल्ली और उ.प्र. को पेयजल के लिए क्रमश 300 क्यूसेक और 200 क्यूसेक पानी उपलब्ध कराया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक, यह दिल्ली में 40 लाख और उ.प्र. में 30 लाख आबादी की पेयजल की आवश्कताओं को पूर्ण करता है। कम प्रवाह की अवधि के दौरान, जब टिहरी में भागीरथी नदी का प्रवाह बहुत कम हो जाता है एवं उ.प्र. राज्य में नहरों के माध्यम से सिंचाई पर बहुत अधिक निर्भरता हो जाती है, उस समय आवश्यक पानी की आपूर्ति टिहरी बांध से की जाती है।