पर्यावरण

परियोजना के लिए पर्यावरण संबंधी अनुमति देते समय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने अपने दिनांक19.07.1990के पत्र में कुछ शर्तें निर्धारित की थीं । इन शर्तों को पूरा करने के लिए कुछ अध्ययनों की जरूरत थी,जिन्हें पूरा किया जाना था,उन अध्ययनों को पूरा कर,निकले निष्कर्षों के आधार पर परियोजना के निर्माण कार्यों के साथ-साथ कार्यान्वयन हेतु कार्य योजनाएं तैयार करना था।

सभी आवश्यक अध्ययन पूरे कर लिए गए हैं और उनकी रिपोर्टें पर्यावरण और वन मंत्रालय(एमओईएफ)को सौंप दी गई हैं। इन अध्ययनों से यह पता चलता है कि इस परियोजना के निर्माण से पर्यावरण को ऐसी कोई क्षति नहीं होगी,जिनका समुचित उपायों के जरिए उपचार न किया जा सके। इस उद्देश्य के लिए पर्यावरण उन्नयन के लिए कार्य योजनाएं,जहां कहीं आवश्यकता पड़ी हो,कार्यान्वित की गई/की जा रही हैं।

जलागम क्षेत्र उपचार(सी.ए.टी.): पर्यावरणीय स्थितियों के अनुपालन से संबंधित स्थिति संक्षिप्त में नीचे दी गई है:

1983-84से ही जलागम क्षेत्र उपचार समय-समय पर लागू दिशा निर्देशानुसार कार्यान्वयन किए जाते रहे हैं। बाद में यह निर्णय लिया गया था कि उपग्रह से ली गई तस्बीरों के आधार पर केवल"उच्च और बहुत उच्च"क्षरण उन्मूलन वर्गीकरण क्षेत्र के प्रत्यक्ष अपवहन जलागम क्षेत्र का ही उपचार किया जाना है। तदनुसार,पहले उपचार किए गए22,746हेक्टेयर क्षेत्र के अलावा13,500हेक्टेयर क्षेत्र के अतिरिक्त जलागम क्षेत्र के उपचार हेतु जलागम क्षेत्र उपचार योजना,1994तैयार की गई ।

बाद में,हनुमंत राव समिति की संस्तुतियों पर सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों के आधार पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने1998में जलागम क्षेत्र के52,204हेक्टेयर क्षेत्र के उच्च और बहुत उच्च क्षरण क्षेत्र के लिए जलागम उपचार योजना को अंतिम रूप दिया।

जलागम क्षेत्र उपचार का कार्य52,204हेक्टेयर क्षेत्र में पूरा किया गया है ।

कमाण्ड क्षेत्र विकास(सीएडी): कमाण्ड क्षेत्र विकास योजना(सीएडीपी)उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत की गई थी और जुलाई,1998में विद्युत मंत्रालय द्वारा पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को भेजी गई थी। कमाण्ड क्षेत्र विकास योजना में वे क्षेत्र भी शामिल थे,जो अब उत्तरांचल के भाग हैं। मौजूदा नहर के नेटवर्क का उपयोग2.7लाख हेक्टेयर विस्तारित खेती योग्य कमाण्ड क्षेत्र की सिंचाई करने और6.04लाख हेक्टेयर मौजूदा सिंचाई क्षेत्र को स्थायित्व प्रदान करने के लिए किया जाएगा । यह व्यवस्था पेयजल आपूर्ति हेतु भी उपयोग में लायी जाएगी। उ.प्र. सरकार ने संशोधित कमाण्ड क्षेत्र विकास योजना जनवरी,2005में विद्युत मंत्रालय एवं पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को प्रस्तुत कर दी है।

पादप एवं जीव-जन्तु: पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के द्वारा किए गए निर्धारण के अनुसार,जलाशय के कारण प्रभावित पेड़-पौधों के संबंध में अध्ययन बॉटनीकल सर्वे ऑफ इण्डिया(बीएसआई)और जीव जन्तुओं के संबंध में अध्ययन जुलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया(जेडएसआई)द्वारा किए गए। रिपोर्टें वर्ष1993में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को प्रस्तुत कर दी गई थीं। बॉटनीकल सर्वे ऑफ इण्डिया के अध्ययनों से पता चलता है,कि जलाशय के डूब क्षेत्र में कोई भी विलुप्त प्रजातियां नहीं आती हैं तथा इसलिए प्रस्तावित बांध के निर्माण के कारण किसी भी प्रजाति के विलुप्त होने का प्रश्न ही नहीं है। बॉटनीकल सर्वे ऑफ इण्डिया के अध्ययन में कुछ प्रजातियों के पेड़-पौधे लगाने की अनुशंसा की गई थी। तदनुसार उत्तरांचल सरकार के वन विभाग द्वारा पेड़-पौधे लगाने का कार्य पूर्ण कर दिया गया है।

जलाशय के आसन्न स्थित कोटी में वानस्पतिक उद्यान की स्थापना राज्य के वन विभाग द्वारा पूरी की जा चुकी है। इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण पेड़-पौधों के संरक्षण हेतु वानस्पतिक उद्यान की योजना बनाई गई है। उच्च तकनीक वाली नर्सरी में जलमग्न क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाली स्थानिक प्रजातियां रखी गई हैं।

जुलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया द्वारा दिए गए सुझाव के अनुसार,महाशीर मछली की संभावित कमी को देखते हुए,मैसर्स ट्रॉपिकल फिशरीज कन्सलटेंट लि. के माध्यम से एक कार्य योजना तैयार की गई थी और वर्ष1994में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को प्रस्तुत कर दी गई थी । महाशीर मछली से संबंधित कार्य योजना का कार्यान्वयन निदेशक,नेशनल रिसर्च सेन्टर ऑन कोल्ड वाटर फिशरीज स्टेशन,आई.सी.ए.आर.,भीमताल द्वारा शुरू किया गया था। महाशीर मछली की अंडज उत्पत्तिशाला(हैचरी)और फिश फार्म स्थल कोटेश्वर बांध के समीप(टिहरी बांध के20कि.मी. डाउन स्ट्रीम में)विकसित कर दिया गया है। हैचरी स्थापना का कार्य पूरा कर लिया गया है और प्रजनन कार्य एवं आगे के संचालन कार्य प्रगति पर हैं।

महाशीर मछली के अतिरिक्त,अन्य प्रजातियों की मछलियों के प्रजननार्थ,जैसे कामन क्रेप एवं स्नो ट्राउट(snow trout)के प्रजनन का कार्यनेशनल रिसर्च सेन्टर ऑन कोल्ड वाटर फिशरीज भीमताल,द्वारा शुरू किया गया है ।

जल की गुणवत्ता: जल की गुणवत्ता से संबंधित मॉडलिंग अध्ययन रूड़की विश्वविद्यालय,अब आई.आई.टी.,रूड़की द्वारा किया गया था(रिपोर्ट वर्ष1992में पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को प्रस्तुत कर दी गई थी)। इस अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला गया था कि जल को अवरूद्ध करने के कारण जल की गुणवत्ता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा और किसी विशिष्ट उपाय की आवश्यकता नहीं है ।

टी.एच.डी.सी.ने केन्द्रीय जल आयोग के साथ परामर्श कर पाँच जल गुणवत्ता मानीटरिंग केन्द्रों की पहचान की है। टीएचडीसी प्रदूषण नियंत्रण अनुसंधान संस्थान,बी.एच.ई.एल. हरिद्वार(केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा अनुमोदन)के माध्यम से टिहरी बांध के अपस्ट्रीम एवं डाउनस्ट्रीम दोनों में जल गुणवत्ता मानीटरिंग का कार्य कर रहा है ।

केन्द्रीय जल एवं विद्युत अनुसंधान केन्द्र(सी.डब्लू.पी.आर.एस.)ने भी जल प्रवाह पर गणितीय मॉडल का अध्ययन किया और यह निष्कर्ष निकाला कि जलाशय में जल वर्ष भर गतिशील प्रवाह में रहेगा और न कि स्थिर। पूरे जलाशय में घुलनशीलऑक्सीजन(डी.ओ.)और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमाण्ड(बी.ओ.डी.)की पेयजल स्त्रोतों के लिए वांछित अनुमत्य सीमाओं के भीतर रहने की उम्मीद है ।

आपदा प्रबंधन योजना(डी.एम.पी.)टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन द्वारा आपदा प्रबंधन योजना तैयार की गई थी और अप्रैल,1992में कृषि मंत्रालय को प्रस्तुत की गई,जो इस प्रयोजनार्थ नोडल मंत्रालय है। विचार-विमर्श के बाद कृषि मंत्रालय ने24.02.99को आपदा प्रबंधन योजना का अनुमोदन कर दिया था। अगस्त,2000में संपन्न आयोजित आपदा प्रबंधन योजना की समीक्षा बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि उत्तर प्रदेश सरकार को भी इस कार्य में शामिल किया जाए ताकि विभिन्न स्तरों पर अपेक्षित कार्य योजना को व्यवस्थित करने और जिला स्तरों पर राज्य सरकारों की आपदा प्रबंधन योजनाओं का टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारपोरेशन की आपदा प्रबंधन योजना के साथ आपसी सामंजस्य बिठाया जा सके,ताकि चेतावनी प्रणालियां,डिस्चार्ज आपरेशन सिस्टम,संप्रेषण,नेतृत्व एवं आपात स्थितियों के नियंत्रण में संबंधित प्राधिकारियों/व्यक्तियों विभिन्न स्तरों पर परिभाषित किया जा सके तथा उनको नाम/पददेकर जिम्मेवारियां परिभाषित की जा सकें ।

उत्तर प्रदेश सरकार ने दिनांक19.04.2002के कार्यालय आदेश के तहत प्रमुख सचिव,सिंचाई विभाग की अध्यक्षता में आपात स्थितियों से निपटने और जिला स्तरों पर राज्य सरकारों की आपदा प्रबन्धन योजना का टीएचडीसी की आपदा प्रबन्धन योजना के साथ आपसी सामंजस्य बिठाने हेतु एक संचालन दल का गठन किया था।

उत्तरांचल सरकार ने भी आपात स्थितियों से निपटने और जिला स्तरों पर राज्य सरकारों की आपदा प्रबन्धन योजना का टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंटकारपोरेशन लि.की आपदा प्रबन्धन योजना के साथ आपसी सामंजस्य बिठाने के लिए28.01.2003के कार्यालय आदेश के तहत प्रमुख सचिव(सिंचाई एवं ऊर्जा)की अध्यक्षता में एक संचालन दल भी गठित किया था।

भगीरथी नदी प्रबन्धन प्राधिकरण:उत्तर प्रदेश सरकार ने प्राधिकरण स्थापित करने के लिए मार्च,1990में एक प्रशासनिक आदेश जारी किया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसके बाद14.07.1999की अधिसूचना के तहत सांविधिक आधार परभगीरथी नदी घाटी प्राधिकरण का गठन किया था। उत्तरांचल बनने के बाद उत्तरांचल सरकार ने भी वर्ष2003में उत्तर प्रदेश अधिनियम को अपनाते हुए उक्त प्राधिकरण का गठन किया था।

पुनः27जनवरी,2005की अधिसूचना के अनुसार नदी घाटी प्राधिकरण की स्थापना उत्तरांचल नदी घाटी विकास एवं प्रबन्धन अधिनियम,2005के तहत की गईहै ।

मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: टिहरी बांध जलाशय से संभावित स्वास्थ्य प्रभावों का अध्ययन करने के लिए,इस मामले को स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक के साथ उठाया गया तथा उनसे इस विषय पर अध्ययन की व्यवस्था करने का अनुरोध किया गया था। स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक(डीजीएचएस)के निर्देशानुसार राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम(एन.एम.ई.पी.)तथा मलेरिया अनुसंधान केन्द्र(एम.आर.सी.)ने मार्च,1999और सितम्बर,1999में परियोजना क्षेत्र की विस्तृत फील्ड जांच की और जुलाई,2000में प्रशमन उपाय करने की अनुशंसा की। तदनुसार,स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक के अनुशंसानुसार,मुख्य चिकित्सा अधिकारी,टिहरी ने एक कार्य योजना तैयार की,जो जलाशय बनने के बाद कार्यान्वित की जाएगी। आवश्यक पूर्व कार्रवाइयां शुरूकर दी गई हैं।